Friday, February 7, 2014

इस्मत आपा

आज कल इस्मत चुगताई को पढ़ रही हूँ. लम्बे अरसे बाद. 6-7 साल पहले उनकी एकाध किताब पढ़ी थी. तब शब्दों के पीछे छिपे निहितार्थ पढने की काबिलियत नहीं थी. वो तो खैर अब भी नहीं है लेकिन अब उनके जादू से खुद को परे रख पाना असंभव प्रतीत होने लगा है. अब जब फिर से उनकी किताब थामी है तो मैं हैरान हूँ, चमत्कृत हूँ. शब्दों की ऐसी इन्द्रधनुषी छटा बिखेरने की कला किस तरह से हासिल की होगी उन्होंने.? ये जरुर जरुर खुदाई तोहफा होता होगा. हम जैसे लोग जो थोड़े बहुत शब्दों की दुकान लगाकर और उसपर कुछ सहृदय मित्रों की तारीफें वसूल कर खुश हो जाते है, उन्हें समय समय पर ऐसे लोगों को जरुर पढना चाहिए. अगर कुछ आत्ममुग्धता आने लगी भी हो तो झट से झड जायेगी.
इस्मत जी कि लेखन शैली की मैं तो दीवानी बन गई हूँ.. सोचती हूँ किस तरह उन्होंने उस ज़माने में इतना बढ़िया काम किया. तब, जब मुस्लिम लडकियां तो छोडिये हिन्दू लड़कियों तक के लिए जीना एक बड़ी चुनौती थी. 1935 के आसपास. बताया जाता है कि इस्मत जी पहली भारतीय मुस्लिम महिला थी जिन्होंने बीए और बी.एड की डिग्रियां हासिल की थी. उनके लेखन में उस वक्त के मुस्लिम परिवेश की झलक साफ़ दिखाई पड़ती है. लेकिन उनकी लेखनी का कमाल तो उनके शब्द-चयन में है. एक छोटी सी चीज भी उनके नज़रिए से देखने पर इतनी अहम लगने लगती है कि पढने वाला चमत्कृत रह जाता है. उनके अंदाजेबयां में उर्दू शब्दों की भरमार उनके लेखन को एक चाशनी सा मीठापन बख्शता है जिसकी मिठास आपके ज़हन-ओ-दिल में देर तक छाई रहती है. किरदारों पर उनकी पकड़ लाजवाब है. जिस किसी भी किरदार की डिटेलिंग में वो जाने लगती है, साथ साथ आप भी उस किरदार के अन्दर उतरने लगते है. यूं लगने लगता है कि उस किरदार की रूह का कोई टुकड़ा आपके अन्दर पैवस्त कर दिया गया हो. फिर आप आप नहीं रहते. उस किरदार में तब्दील होने लगते है. उसका दर्द, उसकी हंसी, उसके ख्वाब, उसकी नाकामियां सब आपको अपनी लगने लगती है. और पाठक को इस हद तक किरदार में उतार देना एक रचनाकार का अज़ीम करिश्मा है. अल्फाजों के मामले में इस्मत जी का खज़ाना इतना वैभवशाली है कि उर्दू भाषा के तालिबेइल्म अगर उनको पाबंदी से पढ़े तो उर्दू जुबां पर उनकी ज़बरदस्त पकड़ बन जाए.
इस्मत जी के लेखन में एक तरह की बगावत है. आग है. दकियानूसी मान्यताओं को धता बताती, वर्जनाओं को तोडती, सीमाओं को धुत्कारती उनकी लेखनी के साहस को नमन करने का दिल करता है. इतना साहसिक लेखन, वो भी उस ज़माने में, यकीनन एक बहुत बड़ी उपलब्धि है. और सबसे बड़ी बात ये कि उनका लेखन बोझिल नहीं है. वो ज्ञान की कक्षाएं नहीं लेती बल्कि अपने किरदारों के माध्यम से इतनी सहजता से हमें आईना दिखाती है कि हम दंग रह जाते है. कभी गुदगुदाता हुआ तो कभी चेतना को झिंझोड़ता हुआ उनका लेखन यकीनन भारतीय साहित्य की एक अमूल्य धरोहर है.
मैं तो खैर उनकी बहुत बड़ी फैन बन गई हूँ.. आपमें से जिन्होंने उन्हें पढ़ा है उनकी क्या राय है ? और जिन्होंने नहीं पढ़ा वो पढ़कर बताएं.

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