Tuesday, September 9, 2014

झूठन

अगर आप एक सुखवस्तु घर में पैदा हुए हैं, अगर आपका बचपन मामूली चीजों की प्राप्ति के लिए जद्दोजहद करते नहीं गुज़रा, शिक्षा का अधिकार आपको बिना किसी ज़ोर-आजमाइश के मिला था तो आप ओमप्रकाश वाल्मीकि जी की सिहरन पैदा करने वाली रचना 'जूठन' कतई ना पढ़े. इसे पढने के बाद आपको अपने जीवन की आसानी से शर्म महसूस हो सकती है. और ये भी हो सकता है कि अचानक से आपको उन चीजों की अहमियत समझ आये जिन्हें आप अपना जन्मसिद्ध अधिकार मानते आये हैं.

सम्मान से जीने के मौलिक अधिकार को तरसते मनुष्यों की व्यथा का दस्तावेज है जूठन.
दुनिया के नेतृत्व का दावा करने वाली हमारी सदियों पुरानी संस्कृति का ये सियाह पहलू कृपया अपने अपने रिस्क पर पढ़े. ये किताब आपको विचलित कर सकती है. बशर्ते कि आप संवेदनशील हो.

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