Saturday, August 9, 2014

इतिहास अपना अपना

कुछ संवाद ज़हन से चिपक कर रह जाते हैं. इसी संवाद को देख लीजिये. एक मुसलमान हिस्ट्री का प्रोफ़ेसर अपने एक हिन्दू छात्र से क्लास में बेमानी बहस कर के घर लौटा है. उस के और उस की पत्नी के बीच हुआ ये वार्तालाप जैसे असल समस्या की जड़ तक पहुँचने की इमानदाराना कवायद लगती है.
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"क्या बात है ?" - सकीना ने पूछा.
इफ्फन ने बात बता दी. "....और अगर लड़कों के दिमाग में यहीं बातें भरी जाती रही तो इस मुल्क का क्या बनेगा ? नई नस्ल तो हमारी नस्ल से भी ज्यादा घाटे में है. हमारे पास कोई ख्वाब नहीं है. मगर इन के पास तो झूठे ख्वाब है. मैं हिस्ट्री पढाता हूँ. ऐसा लगता है कि हिन्दुस्तान की किस्मत में हिस्ट्री है ही नहीं. मुझे अंग्रेजों की लिखी हिस्ट्री पढ़ाई गई. चन्द्रबली को हिन्दुओं की बनाई हुई हिस्ट्री पढ़ाई जा रही है. यही हाल पाकिस्तान में होगा. वहाँ इस्लामी छाप होगी तारीख पर ! पता नहीं हिन्दुस्तानी हिस्ट्री कब लिखी जायेगी !"
"मैं तो कहती हूँ कि पाकिस्तान चले चलिए." - सकीना ने कहा.
"ये पढ़ाने के लिए कि मुसलमानों के आने से पहले हिन्दुस्तानी अनसिविलाइज्ड थे ? नहीं ! दोनों जगहों पर धूल में रस्सी बटी जा रही है. मैं पढ़ाने का काम ही छोड़ दूंगा."
----------- 'टोपी शुक्ला' उपन्यास से साभार.
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यूँ तो राही मासूम रजा साहब ने कई उम्दा रचनाएँ लिखी है लेकिन मेरे लिए उनकी सब से बेहतरीन रचना 'टोपी शुक्ला' ही रहेगी. सभी पुस्तक प्रेमियों को सलाह है कि जरुर जरुर पढ़े. 

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