Monday, July 28, 2014

ज़िन्दगी ख़ाक न थी,

ईद की व्यस्तताओं के चलते दो-तीन दिन फेसबुक पर आना नहीं हो पायेगा. सभी दोस्तों को ईद की एडवांस मुबारकबाद.
इस बीच आप ज़िन्दगी चैनल पर आने वाले 'ज़िन्दगी गुलज़ार है' सीरियल के इस टाइटल ट्रैक का लुत्फ़ उठा सकते हैं. बेहतरीन अल्फाज़.. हदीका कियानी की बेहतरीन आवाज़... बतौरे-ईदी मुझ तक इसे पहुंचाने वाली Shireen Naaz बाजी को दिल से शुक्रिया...
ज़िन्दगी ख़ाक न थी, ख़ाक उड़ा के गुजरी
तुझ से क्या कहते, तेरे पास जो आते गुजरी..
दिन जो गुज़रा तो किसी याद की रौ में गुज़रा,
शाम आई तो कोई ख्वाब दिखाते गुजरी...
रात क्या आई के तनहाई के सरगोशी में,
गम का आलम था मगर सुनते सुनाते गुजरी
अच्छे वक्तों की तमन्ना में रही उम्र-ए-रवां,
वक्त ऐसा था के बस नाज़ उठाते गुजरी...
बेहतरीन... संगीत प्रेमी मित्रगण जरुर सुनें.

Sunday, July 27, 2014

छद्म राष्ट्रवाद



कुछ लोगों का देश प्रेम सिर्फ पाकिस्तान का विरोध करने में ही सारा का सारा खर्च हो जाता है. उधर चीन आपकी गरदन पर पैर भी रख दे तब भी आपको दिखाई नहीं देगा. लेकिन पाकिस्तान को नेस्तनाबूत करना इन लोगों का सब से बड़ा सपना है. पाकिस्तान से क्रिकेट का मैच जैसे एक युद्ध लगता है इन्हें. और अगर पाकिस्तान से कभी इंडिया हार जाए तो उस ग़म की इन्तहा पूछिए ही मत. ये अलग बात है कि ये ग़म गलत करने के लिए ये राहत फ़तेह अली खान, आतिफ असलम या अदनान सामी को ही सुनते हैं. हाथ में जाम हो तो ग़ुलाम अली और मेहंदी हसन को जगजीत सिंह पर तरजीह देते हैं. फिर नशे में धुत्त होने के बाद पाकिस्तान को गालियां देते हैं. हद है दोगलेपन की. पाकिस्तानी से शादी कर लेने भर से सानिया इनके लिए देशद्रोही हो जाती है. ऐसे बेतुके लॉजिक का कोई क्या जवाब दे ?
वैसे तो कतई संभावना नहीं है लेकिन कल अगर मेरी शादी किसी पाकिस्तानी से हो जाए तो ये लोग मुझे भी इसी तरह ट्रीट करेंगे. तो प्रखर राष्ट्रवादियों से मेरी हाथ जोड़ के गुजारिश है कि मुझ जैसी एंटी-नेशनल थॉट्स वाली लड़की को अपनी लिस्ट से निकाल फेंके और अपने देशभक्त होने का सबूत दे. इससे आपकी राष्ट्रभक्ति में चार चाँद लग जायेंगे और मुझे भी थोड़ी आराम की सांस आएगी. आपका छद्म राष्ट्रवाद ना तो मेरी समझ में आता है और ना ही दिल में. हाँ, दम जरुर घुटता है.

Saturday, July 26, 2014

सानिया मिर्ज़ा

पेप्सिको की सीईओ इंदिरा नूई, जो भारत में पली-बढ़ी तो है लेकिन पिछले तीस-पैंतीस सालों में शायद ही कभी भारत आई है. फिर भी वो भारतीय है और हमें उन पर गर्व है...
एस्ट्रोनॉट सुनीता विलियम्स का भारत से महज इतना रिश्ता है कि उनके पुरखे भारत से आये थे. वो भी सिर्फ पिता की तरफ के. लेकिन वो भी भारतीय 'मूल' की है और हमें उन पर गर्व है....
यही किस्सा अमेरिकन राजनीति में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त और सम्प्रति अमेरिका के लुइसियाना प्रांत के गवर्नर बॉबी जिंदल के साथ भी है. उनके माता पिता उनके जन्म से छः महीने पहले ही पंजाब छोड़कर अमेरिका जाकर बस गए थे. लेकिन वो भी भारतीय 'मूल' के हैं और हमें उन पर गर्व है.
हमें गर्व है उन सभी एनआरआई लोगों पर जो महज़ कहने के लिए भारत से सम्बंधित है लेकिन सफल हैं.
नोबेल पुरस्कार विजेता वी.एस.नायपॉल से लेकर माइक्रोसॉफ्ट सीईओ सत्या नडेला तक, फिजी के प्रधानमन्त्री महेंद्र चौधरी से लेकर 'अ सूटेबल बॉय' के लेखक विक्रम सेठ तक सब पर हमें गर्व है. सभी हमारे अपने 'भारतीय' हैं.
लेकिन....
विश्व टेनिस में भारत की बरसों तक पहचान बनी रही सानिया मिर्ज़ा भारतीय नहीं पाकिस्तानी है. वो सानिया मिर्ज़ा जिसने भारत जैसे टेनिस में फिसड्डी मुल्क का प्रतिनिधत्व करते हुए मार्टिना हिंगिस, स्वेतलाना कुजनेत्सोवा और विक्टोरिया अजारेंका जैसी दिग्गज खिलाड़ियों पर जीत दर्ज की. जो पहली ''भारतीय'' टेनिस खिलाड़ी थी जिसने किसी भी तरह का 'डब्ल्यूटीए टूर टाइटल' जीता था. जो आज तक हाईएस्ट रैंकड ''भारतीय'' महिला टेनिस प्लेयर है. जिसने मुल्लाशाही से जम कर लोहा लिया और तिरंगे की शान बढाते हुए जी जान से खेली. वो सानिया मिर्ज़ा भारतीय नहीं है.
हैं न कमाल...!!!
खैर, हमें क्या ? रोती है तो रोती रहे सानिया. पाकिस्तानियों से हमदर्दी रखने का चलन नहीं है मेरे भारत महान में.
वैसे ये 'वसुधैव कुटुम्बकम' का नारा किस मिट्टी की उपज था ???

कम्बख्त इश्क

( अभी अभी एक मित्र से हो रहे वार्तालाप से उपजा गंभीर सवाल... )
कहते हैं कि इश्क में आदमी अंधा हो जाता है.
औरतों का क्या स्टेटस रहता है ???
जरुर बहरी हो जाती होंगी...
या कोई और नुक्स नुमायाँ होता है औरतों में ??
इश्क में डिग्री-धारी, डिप्लोमा-होल्डर मित्रगण कृपया मार्गदर्शन करें.

Friday, July 25, 2014

मानवता सर्वोपरि है

गाज़ा से पूरी हमदर्दी है मुझे भी. आपकी ही तरह. लेकिन अगर आपको बीस सालों से दरबदर कश्मीरी पंडितों का दर्द दिखाई नहीं देता तो आप सबसे बड़े पाखंडी है. दर्द साझा होता है जनाब. हर गलत बात पर दर्द होता है. हर मजलूम की मौत पर गुस्सा आता है. लेकिन अगर आप मरने वाले का मजहब देखने के आदी हो, अपने दर्द को चुनिन्दा लोगों के लिए बचा रखते हो तो आप एक संवेदनशील इंसान कतई नहीं हो, आप एक फ्रॉड हो. और एक स्वस्थ संमाज के निर्माण में सब से बड़ा रोड़ा हो.
कश्मीरी पंडित हो या गाज़ा शरणार्थी... ईराक में मरते मासूम हो या दुनिया के महान लोकतंत्र भारत में रौंदी जा रही कन्याएं.... हर एक का दर्द अपने सीने में महसूस करना ही मानवता है. और अगर आप इसमें भी सिलेक्टिव हो तो आप मानव कहलाने के कतई हकदार नहीं हो. आप एक मुसलमान, एक हिन्दू, एक भारतीय, एक यहूदी, एक राष्ट्रवादी, एक मजहब-परस्त, एक आस्तिक, एक नास्तिक या इनके अलावा कुछ भी हो सकते हो लेकिन एक इंसान कभी नहीं हो सकते.
इन खांचों से निकल कर इंसान बनने की कोशिश की जानी चाहिए.. इससे भले ही कुछ ना हो, भले ही दुनिया ना बदले लेकिन शीशे में खुद से नज़र मिलाते वक्त कभी शर्म नहीं आएगी.
मेरे लिए मानवता से बढ़कर कुछ नहीं. ना ही राष्ट्रवाद और ना ही मजहब...

Wednesday, July 23, 2014

My Birthday

22 जुलाई 1989 से 22 जुलाई 2014.
चौथाई सदी पूरी कर ली उम्र की. आज कल मनस्थिति ठीक ना होने के कारण फेसबुक से दूरी बना रखी है. लेकिन मेरे मेहरबान दोस्तों ने शुभकामनाओं से मेरा इनबॉक्स भर दिया. और मुझे लौट आना ही पड़ा. साढ़े चार सौ से ज्यादा मेसेजेस..!!!!
मैं अभिभूत हूँ... शुक्रगुजार हूँ... आपकी मुहब्बतों की कर्ज़दार हूँ...
मेरे अब तक के तमाम जन्मदिन पर जितने लोगों ने मुझे विश किया उनका टोटल भी लगाया जाए तो भी इस बार की संख्या से कम निकलेगा. इतनी मुहब्बत को लौटा पाना तो नामुमकिन टास्क है मेरे लिए. मैं आप सबका दिल से शुक्रिया अदा करती हूँ और वादा करती हूँ कि जिन वजुहात की वजह से आपका मुझपर इतना अपार स्नेह है उन्हें बरकरार रखने की जी-जान से कोशिश करुँगी. इतने ज्यादा मेसेजेस का पर्सनली जवाब देना बेहद मुश्किल है लेकिन मैं जरुर दूँगी. बस थोडा सा वक्त दीजियेगा.
मुल्क में जारी हैवानियत का नंगा-नाच (बदायूं, मोहनलाल गंज, भगाना ), दुनिया में जारी मासूमों का कत्ले-आम ( ईराक, गाजा, यूक्रेन ) और चारों ओर दम तोडती इंसानियत.. इन हालातों में कोई भी ख़ुशी मनाना किसी गुनाह से कम नहीं महसूस होता. ज़मीर शर्मसार होता है. लेकिन इससे आपकी शुभकामनाओं का मोल कम नहीं हो जाता. आप सब को दिल की गहराइयों से धन्यवाद.
खूंरेजी के इस दौर में खुश होने का पाखण्ड करते वक्त न जाने क्यूँ किसी नामालूम शायर की ये पंक्तियां ज़हन पर दस्तक देती रहती हैं...
"जब भी किसी ने उम्र के बढ़ने की दी दुआ,
मैं काँप काँप उठी के सज़ा और बढ़ गई...!!!"

Tuesday, July 15, 2014

संवेदनशीलता

मौजूदा असाधारण हालातों से उपजी एक साधारण लघुकथा.

~~~~~~~~~~~ संवेदनशीलता ~~~~~~~~~~~

आज किटी मर गई. अदनान को बेहद दुःख हुआ. बिटिया का रोना तो देखा नहीं जा रहा. मुश्किल से एक साल हुआ था किटी को इस घर में. गोल-मटोल, रुई के गोले सी किटी सारे घर की दुलारी थी. सारा की तो वो जान थी. सारा की अम्मी फातिमा ने शुरू शुरू में बिल्ली पालने को लेकर हंगामा मचाया था लेकिन बाद में वो भी किटी के फैन क्लब में शामिल हो गई थी. तीन लोगों के इस छोटे से परिवार में किटी की हैसियत चौथे सदस्य जैसी थी. यूँ अचानक उसका गुजर जाना सब के लिए बहुत बड़ा सदमा था. चिड़ियों के पीछे दौड़ लगाती हुई किटी अचानक सड़क पर पहुँच गई थी. और वहीँ एक कार की चपेट मर आकर मारी गई थी. उसके छिन्न-भिन्न शरीर के तरफ देखना काफी हौसले का काम था. लोगों ने कहा भी कि इसे नगर निगम के खत्ते पर फेंक आओ लेकिन सारा की ज़िद के आगे अदनान को झुकना ही पड़ा. सारा की ख्वाहिश थी कि किटी को बाकायदा दफनाया जाए. लॉन में उसने खुद अपने हाथों से गड्ढा खोदा. उसमे उसे दफनाया. मिट्टी डालने के बाद उस पर बड़ा सा पत्थर ला रखा ताकि आवारा कुत्ते कब्र को खोद ना सके. सारा ने लॉन से ही तोड़कर कब्र पर फूल भी चढ़ाए. इस सारे वक्त सारा ख़ामोशी से रोती रही थी. खुद उसका गला भी कई बार भर आया. एकाध बार आंसू भी छलक आयें. अब पता नहीं इसकी वजह किटी से मुहब्बत थी या वो बेटी के दुःख में रंजीदा था. 

अपने आंसुओं से खुद अदनान को भी हैरत हुई. कुछ कुछ गर्व भी हुआ खुद पर. एक बिल्ली के मरने पर आँखों में पानी आ जाना उसे अपने संवेदनशील होने की निशानी लगी. क्रूरता से भरी इस दुनिया में रह कर भी अपने अन्दर की इंसानियत बरकरार रखने के लिए खुद की पीठ थपथपाने का मन हुआ. बहुत अच्छी फीलिंग आई खुद के लिए. आखिर इस दुनिया में दूसरों के दुःख में दुःखी होने वाले लोग बचे ही कितने है ? 

रात को फातिमा ने खाना परोसा तो उससे ढंग से खाया न गया. एक चमकीली, तवज्जो मांगती उदासी उसके वजूद से लिपटी पड़ी थी. ऐसी ही मनस्थिति में उसने फेसबुक खोल लिया. शायद यहाँ मन बहल जाए ! न्यूज़ फीड में जो पहली ही पोस्ट थी उसमे कोई प्रिया शर्मा अपनी (?) तस्वीर लगाकर दोस्तों से उसकी खूबसूरती के बारे में राय पूछ रही थी. उसके ‘हाय दोस्तों, कैसी लग रही हूँ ?’ के जवाब में ‘cute like angel’ का कमेन्ट चिपकाकर वो आगे बढ़ गया. फिर चुटकुलों के ग्रुप में जाकर कुछ जोक्स पढ़े. मन प्रसन्न हो गया. यूँ ही घूमता घूमता एक ऐसी पोस्ट पर जा पहुंचा जहाँ ईराक में जारी नरसंहार पर अदनान के जातभाई ने कुछ लिखा था. बरसों से शियाओं द्वारा सुन्नियों पर जारी जुल्मो-सितम की बड़ी डिटेल्ड रिपोर्ट थी वो. पढ़कर उसका खून खौल गया. जिस्म थरथराने लगा. उसने कमेन्ट लिख मारा,
“शियाओं ने हमेशा हमारे मजलूम सुन्नी भाइयों का खून बहाया है. इस पाक जमीन पर से इनका वजूद हमेशा हमेशा के लिए मिट जाना चाहिए. इन्हें चुन चुन कर काट दो. या अल्लाह, मेरे सुन्नी भाइयों की मदद अता फरमा. उन्हें फतह दिला दें. शियाओं का वजूद मिटा दे.”

लिखकर उसे कुछ सुकून मिला. अपने भाइयों की हिमायत में चंद शब्द लिखकर यूँ लगा जैसे भाई-चारे की नई इबारत लिख आया हो. वहाँ से आगे बढ़ा तो गाज़ा में जारी हिंसा की तस्वीरें उसे विचलित कर गई. उसके ‘संवेदनशील’ मन को झटका सा लगा क्रूरता की ये नुमाइश देखकर. रगों में खून फिर से उबाल मारने लगा. अपने मुस्लिम भाइयों की इस दुर्दशा पर ग़म और गुस्सा एक साथ आने लगा. ऐसे में एक और तस्वीर पर नज़र अटक सी गई. उस तस्वीर में कुख्यात तानाशाह हिटलर ये कहता हुआ दिखाई दे रहा है कि, 
‘मैं चाहता तो हर एक यहूदी को मार सकता था लेकिन मैंने कुछ को छोड़ दिया. ताकि दुनिया को ये समझ आता कि मैंने इन्हें क्यूँ मारा था.’ कितनी खरी बात ! एकदम दिल को छू गई. उसने फटाफट उस तस्वीर को शेयर किया और उसके साथ कैप्शन लगाया,

“महान हिटलर ने यहूदियों को मार कर जो एहसान इस दुनिया पर किया था उसका एहसास अब जाकर लोगों को हो रहा है. ये कौम है ही काट डालने लायक. हिटलर समझदार था. उसने इनकी फितरत ठीक पहचानी थी. समय से आगे की सोच रखने वाले इस महान योद्धा को मेरा सलाम.’

और इस तरह इंसानियत के पैरोकार अदनान ने मानव इतिहास की सबसे घृणास्पद घटना का समर्थन किया जिसमें इंसानियत को बुरी तरह रौंदा गया था. साथ ही हिटलर जैसे निहायत ही क्रूर और मानवजाति पर कलंक हत्यारे की हिमायत कर गर्व की अनुभूति प्राप्त की. हिटलर के रूप में एक नए आराध्य की प्राप्ति कर उसे आज की फेसबुक विजिट सार्थक लगने लगी थी. आज एक बार फिर उसने अपने अन्दर मौजूद इंसानियत के दर्शन किये थे. हजारों मील दूर मर रहे अपने भाइयों के लिए वो दुःखी हुआ था. उनका दर्द उसने अपने सीने में महसूस किया था. इससे बड़ी इंसानियत की और क्या मिसाल होगी ? उसे बेहद सुकून मिला. खुद पर फक्र भी हुआ. अब वो चैन से सो सकता था. उसे नींद आने भी लगी थी. और फिर इंसानियत की भावना से लबरेज़ अपने दिल को संभाले हुए वो सोने चला गया.



कहानी तो ख़त्म हो गई लेकिन उस ‘संवेदनशीलता’ का पता न लगा जो एक बेजुबान जानवर के मरने पर अदनान के पूरे वजूद से फूटी पड़ रही थी.

शायद..... शायद उसे वो किटी के साथ ही दफना आया था.

Monday, July 14, 2014

दौर-ए-खूंरेजी

उजड़े से लम्हों को आस तेरी
ज़ख़्मी दिलों को है प्यास तेरी
हर धड़कन को तलाश तेरी
तेरा मिलता नहीं है पता
खाली आँखें खुद से सवाल करे
अमनों की चीख बेहाल करे
बहता लहू फ़रियाद करे
तेरा मिटता चला है निशाँ
रूह जम सी गयी
वक़्त थम सा गया
टूटे ख़्वाबों के मंज़र पे तेरा जहाँ चल दिया
नूर-ए-खुदा, नूर-ए-खुदा
तू कहाँ छुपा है हमें ये बता
नूर-ए-खुदा, नूर-ए-खुदा
यूँ ना हमसे नज़रें फिरा..
( खूंरेजी के इस दौर में चादर तान के सोये हुए खुदा को कोई जगाओ दोस्तों.. कहना कि विश्वास दरकने लगा है, यकीन डगमगा रहा है. चारों ओर बहता लहू तेरे ना होने का सबूत देता नज़र आ रहा है. और ये भी कहना कि 'खुदा की हर बात में कुछ न कुछ बेहतरी होती है' वाला लॉजिक समझना भी अब मुश्किल होता जा रहा है. आस्था-अनास्था की मुंडेर पर लटक रहे लोगों को या तो रास्ता दिखा या रास्ते से हट जा. बिलखते हुए बच्चों को नज़र-अंदाज़ करने वाले को पिता कैसे माने ? तेरे होने का सबूत नहीं चाहिए बस सिर्फ इतना कर दे कि आस्था भी बनी रहे और इंसानियत भी. बाकि तेरे नाम पर सदियों से चल रहा सर्कस जारी तो रहेगा ही. कोई कह दें खुदा से.)

Sunday, July 13, 2014

Lawyers

जॉन ग्रीषम के नॉवेल 'दी फर्म' में एक पुराना, खेला खाया वकील नए रंगरूट को वकालत के पेशे की हकीकत कुछ यूँ समझाता है.

"This business works on you. When you were in law school you had some noble idea of what a lawyer should be. A champion of individual rights; a defender of the Constitution; a guardian of the oppressed; an advocate for your client’s principles. Then after you practice for six months you realize we’re nothing but hired guns. Mouthpieces for sale to the highest bidder, available to anybody, any crook, any sleazebag with enough money to pay our outrageous fees. Nothing shocks you. It’s supposed to be an honorable profession, but you’ll meet so many crooked lawyers you’ll want to quit and find an honest job. Yeah, Mitch, you’ll get cynical. And it’s sad, really.”

अच्छा लगा सो शेयर किया. वकील बिरादरी से उलझने का कतई इरादा नहीं है.

Sunday, July 6, 2014

तनहा

पूछूं तो एक एक शख्स है तनहा सुलग रहा,
देखूं तो शहर शहर है मेला लगा हुआ.....
------------- अज्ञात.

Tuesday, July 1, 2014

दूर जाना पड़ता है

चंद सतरों में उम्र भर की मुसाफिरी का खाका खींचने वाले इस अनाम शायर को सलाम......!!!!

आलम-ए-मुहब्बत में
इक कमाल वहशत में
बे सबब रफाकत का,
दुःख उठाना पड़ता है
तितलियां पकड़ने को,
दूर जाना पड़ता है.....!!!
बहुत दूर जाना पड़ता है...!!!

-------- अज्ञात.

मुद्दतों से

मुद्दतों से,
जिस्म के झूले में दिल,
मुर्दा बच्चे की तरह,
खामोश है......
और ज़िन्दगी,
इक बावली माँ की तरह,
झूला झुलाये जाती है....
पंखा हिलाये जाती है....
------------ अज्ञात.