Tuesday, April 8, 2014

अरविन्द को थप्पड़

जिसने मारा उसे तो आप डिफेंड कर ही लोगे कि अनपढ़, अशिक्षित व्यक्ति था. लेकिन आप सब पढ़े लिखे, दानिशमंद लोग जो इस बात पर बधाइयां बटोर रहे हैं, आपकी संवेदनहीनता देख कर हतप्रभ हूँ. ये कौन सा समाज है भाई, जो एक निहत्थे को पिटते हुए देखकर तालियां बजाता है.? इस बेशर्म, बेगैरत समाज का हिस्सा बनकर बेहद शर्मिंदा हूँ.
भाड़ में गई राजनीति. आज से, इसी क्षण से मेरी भारतीय राजनीति में रूचि समाप्त होती है. कोई जीते-हारे मुझे कुछ नहीं फर्क पड़ना. चूल्हे में गया आपका चुनाव. मेरा भारत वो भारत कतई नहीं रहा जो पूरे विश्व में मानवीय मूल्यों की शरणस्थली हुआ करता था. क्या बन गए हैं हम ! असभ्य, अशिष्ट, परपीड़ा से खुश होने वाले सैडिस्ट लोगों का हुजूम !
मैं शर्मिंदा हूँ. मैं सच में ही शर्मिंदा हूँ.
ये किसी व्यक्ति की राजनीतिक विचारधारा के सपोर्ट में नहीं लिखा गया है. ये एक क्रूर समाज का, एक कुत्सित मानसिकता का विरोध मात्र है. कोई हैरानी नहीं है कि हमारे देश में हत्यारों की, खूंखार अपराधियों की ज़बरदस्त फैन फॉलोइंग रहती आई हैं.
मैं बहुत दुखी हूँ आज.. मेरे भारत का ये रूप देखा नहीं जा रहा. कल हम तालिबानियों की तरह लोगों को चौराहे पर गोली मारने का कार्यक्रम भी पूरे मन से एन्जॉय करेंगे. ज्यादा दूर नहीं है वो दिन. बस इतनी सी दुआ है कि वो दिन देखने से पहले मेरा अस्तित्व ही मिट जाए. नहीं जीना मुझे ऐसे भारत महान में.


सन्दर्भ :- दिल्ली में अरविन्द केजरीवाल को मारा गया थप्पड़ 

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