Tuesday, March 25, 2014

अन्दर का ज़हर

अन्दर का जहर चूम लिया धुल के आ गए
कितने शरीफ लोग थे सब खुल के आ गए
सूरज से जंग जीतने निकले थे बेवक़ूफ़,
सारे सिपाही मोम के थे घुल के आ गए
मस्जिद में दूर दूर कोई दूसरा न था,
हम आज अपने आप से मिल-जुल के आ गए
नींदों से जंग होती रहेगी तमाम उम्र,
आँखों में बंद ख्वाब अगर खुल के आ गए
सूरज ने अपनी शक्ल भी देखी थी पहली बार,
आईने को मजे भी तकाबुल के आ गए
अनजाने साये फिरने लगे है इधर उधर,
मौसम हमारे शहर में काबूल के आ गए
--------------- राहत इन्दोरी.
तकाबुल - आमना-सामना, standing face,to face.

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