Monday, March 17, 2014

फटा सुर ना बख्शें.

अद्वितीय शहनाई वादक भारतरत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खान के जीवन पर आधारित किताब 'सुर की बारादरी' से एक अंश :-
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किसी दिन एक शिष्या ने डरते-डरते खां साहब को टोका - "बाबा ! आप यह क्या करते हैं ? इतनी प्रतिष्ठा है आपकी ! अब तो आपको भारतरत्न भी मिल चुका है, यह फटा हुआ तहमद न पहना करें. अच्छा नहीं लगता. जब भी कोई आता है, आप इसी फटे तहमद में सबसे मिलते हैं."
खां साहब मुस्कुराए. लाड से भरकर बोले - "धत ! पगली ई भारतरत्न हमको शहनईया पे मिला है, लुंगिया पे नाहीं. तुम लोगों की तरह बनाव-सिंगार देखते रहते, तो उमर ही बीत जाती, हो चुकती शहनाई. तब क्या ख़ाक रियाज़ हो पाता ! ठीक है बिटिया, आगे से नहीं पहनेंगे, मगर इतना बताएं देते हैं कि मालिक से यही दुआ है - फटा सुर न बख्शे. लुंगिया का क्या है, आज फटी है, कल सी जायेगी."
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मेरी भी रब से दुआ है कि ज़िन्दगी के सफ़र में मुहाज कोई भी हो, अपने काम के प्रति यही समर्पण की भावना हो मुझमें .यही लगन हो मुझमे.

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