Tuesday, January 28, 2014

प्राइम टाइम विथ रविश कुमार.

""जिनका दंगों में कोई मारा गया है क्या सिर्फ वही पीड़ित है..? और जिन्होंने डर के मारे घर छोड़ रखा है वो लोग क्या है..? क्या उनका कोई मानवाधिकार नहीं है..?""

कल प्राइम टाइम में रविश कुमार का ये सवाल काफी देर तक हवा में तैरता रहा और जवाब के लिए मौजूदा पैनलिस्ट्स का मुंह ताकता रहा. सपा नेता बुक्कल नवाब कहते रहे कि मुजफ्फरनगर में सिर्फ एक कैंप बचा है और उसमे भी शरणार्थी नहीं बल्कि कांग्रेस/भाजपा के एजेंट रह रहे है जिन्हें मुआवजे के लालच में वहां रोका गया है. रविश कुमार पूछते रहे कि ऐसी जानलेवा ठण्ड में कौन वहां रहना चाहेगा लेकिन नवाब साहब अड़े रहे अपनी बेतुकी बात पर. रविश जी ने कांग्रेस के पीएल पुनिया साहब से पूछा कि राहुल गांधी ने वहां का दौरा तो किया, अच्छी बात है लेकिन वहां के लोगों के लिए क्या किया..? माना की सपा सरकार बिल्कुल फेल है पर इससे आपकी जवाबदेही कैसे ख़त्म हो गयी..? पुनिया साहब अपना राग अलापते रहे की ये राज्य सरकार की जिम्मेदारी है.

कुल मिलाकर ये कि इस देश में किसी भी चीज में राजनीति की जा सकती है. कोई मरे, जिए इससे हमारे रहनुमाओं को कोई फर्क नहीं पड़ता. ये कमबख्त वोट बैंक कैसी चीज है जिसकी वजह से इन नेताओं की सामान्य संवेदनाएं भी मर जाती है...? कल ही जनाब आज़म खान साहब का वक्तव्य आया है कि 'ये कूड़ेदान में पड़े दस वोट है जिन्हें कांग्रेस समेटना चाहती है.' यानि नेताजी की निगाह में उन लोगों का महत्त्व कूड़े से अधिक नहीं. वाह रे समाजवाद...!! नेता जी आगे ये भी कहते सुने गए कि मैं प्रदेश के मुसलमानों का एकमात्र नेता हूँ.. अव्वल तो ये बात है नहीं नेताजी. आप एकमात्र तो क्या नेता ही नहीं है उनके. और अगर किसी वजह से ऐसा हो भी तो इत्मीनान रखिये रहेंगे नहीं. आप जैसे रहनुमा जिस कौम में हो उसका बेडा गर्क हो ही हो. अहंकार तो ना ही यजीद का रहा ना ही रावण का. तो आपका कैसे रह पायेगा..? एक दिन आप का मकाम भी कूड़ेदान ही होगा. यकीन ना आये तो अपने पुराने साथी श्री श्री अमर सिंह ठाकुर को याद कर लीजियेगा.

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