Tuesday, January 28, 2014

माणसाने - नामदेव ढसाळ

मनुष्य
पहले तो खुद को पूरी तरह बर्बाद करे
चरस ले, गांजा पिये
अफ़ीम लालपरी खाए
छक के देसी दारू पिये
इसको, उसको, किसी को भी
माँ-बहन की गालियाँ दे
पकड़कर पीटे

मर्डर करे
सोते हुओं का कत्ल करे
लड़कियों-छोरियों को छेड़े
क्या बूढ़ी, क्या तरूणी, क्या कमसिन
सभी को लपेट कर
उनका व्यासपीठ पर करे बलात्कार

ईसा के, पैगंबर के, बुद्ध के, विष्णु के वंशजों को फांसी दे
देवालय, मस्जिद, संग्रहालय आदि सभी इमारतें चूर-चूर कर दे

दुनियाभर में एक फफोले की तरह फैल चुकी
इन इंसानी करतूतों को फूलने दे
और अचानक फूट जाने दे

इसके बाद जो शेष रह गये
वे किसी को भी गुलाम न बनायें
लूटें नहीं
काला-गोरा कहें नहीं
तू ब्राह्मण, तू क्षत्रिय, तू वैश्य, तू शूद्र ऐसे कहकर दुत्कारें नहीं
आकाश को पिता और धरती को माँ मानकर
उनकी गोद मे मिलजुलकर रहें

चांद और सूरज भी फीके पड़ जाएँ
ऐसे उजले कार्य करे
एक-एक दाना भी सब बांट कर खाएँ
मनुष्यों पर ही फिर लिखी जाएँ कविताएँ
मनुष्य फिर मनुष्यों के ही गीत गायें

-नामदेव ढसाळ
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- अनुवाद द्वारा हितेन्द्र अनंत

मूल मराठी कविता यहाँ से पढ़िये
http://www.globalmarathi.com/20120215/5490157106900750983.htm

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