Sunday, March 31, 2013

कश्ती भंवर में है

तूफ़ान कर रहा है मेरे अज्म का तवाफ़
दुनिया समझ रही है के कश्ती भंवर में हैं....!!!

--------अज्ञात

Saturday, March 30, 2013

किताबें

आज अपने पसंदीदा सब्जेक्ट किताबों के बारे में कुछ लिखने का मन कर रहा हैं | किताबे मानवजाति द्वारा की गयी सबसे बेहतरीन खोज है | सभ्यताओं को दिया गया सबसे बेहतरीन तोहफा है, ऐसा मेरा मानना है | मानना क्या दृढ विश्वास है | जितना सब कुछ हम पढने की आदत डालकर सीख सकते हैं उतना सिखाना तो किसी भी संस्थान के बस का नहीं | मेरी अपनी ज़िन्दगी में किताबों का बड़ा ही महत्वपूर्ण रोल रहा हैं | अगर आज मैं कुछ लिखने का और उसे दोस्तों के सामने पेश करने का हौसला कर पा रही हूँ तो ये किताबों की देन है | ये हुनर, ये हौसला, ये अंदाजेबयां सबकुछ पढ़ पढ़ कर आया है | वरना मेरी ऐसी औकात कहाँ...??? अपनी अब तक की छोटी सी और पाबंदियों भरी ज़िन्दगी में मैंने बहुतकुछ पढ़ा है | फिर भी लगता है कुछ भी नहीं पढ़ा | ऐसा लगता हैं जैसे महासागर से सिर्फ चुल्लू भर पानी ही निकाल कर पी पाई हूँ |

पढने के बारे में एक बात ख़ास तौर से कहना चाहूंगी | जरुरी नहीं की आप बड़े बड़े ग्रन्थ ही पढ़े | ऐसा करने पर ही आपका पढ़ा लिखा होना सार्थक होता हो | सुगम और मनोरंजक साहित्य पढना भी एक जीवन बदल देने वाला अनुभव साबित हो सकता हैं | प्रेमचंद जी से बढ़कर और क्या मिसाल हो सकती हैं...?? सीधी साधी भाषा में मानवीय जीवन की हर भावना को छुआ है उनकी लेखनी ने | उन के अलावा अनेको अनेक उदाहरण है जिनकी कलम ने हमे ज़िन्दगी के हर एक पहलू से वाकिफ कराया है | प्रेम,दया,घृणा,विश्वास,धोखा,वास्तल्य आदि सारी भावनाएं किरदारों में ढलकर हमारे सामने एक पूरी दुनिया का निर्माण करती है और उसी माध्यम से हम तक लेखक का सन्देश बाखूबी पहुँचता है |
हमारे देश में पुस्तक प्रेमियों की संख्या वैसे हमेशा ही कम रही है | हमारे यहाँ का पाठक किताब खरीदना एक महंगा शौक समझता है | कैसी विडम्बना है की दो सौ रुपए का पिज़्ज़ा हमे महंगा नहीं लगता पर सौ रुपए की किताब खरीदना हमारी नज़रों में फिजूलखर्ची है | हमारे यहाँ के सो कॉल्ड जागरूक माता-पिता अपने बच्चों के लिए क्या नहीं करते..?? उन्हें मॉल में ले जाते हैं, मल्टीप्लेक्स में महंगी टिकट खरीदकर उलजलूल फिल्मे दिखाते है, मैकडोनाल्ड का कूड़ा महंगे दामों में खरीदकर खिलाते है, महंगे विडियो गेम्स खरीदकर उन्हें चारदीवारी में कैद करने का खुद ही सामान करते हैं, एक शाम में हसते हसते सैंकड़ो रुपए फूंक डालते हैं | पर अफ़सोस की उन्हें कभी कोई किताब नहीं दिलवाते | ये कभी नहीं कहते की, बेटा ये किताब पढो, बहुत अच्छी हैं | क्यूँ हैं ऐसा..? क्यूँ कि माता पीता को ही पता नहीं की कौन सी किताब पढने लायक है | या पढना भी एक जरुरी चीज़ है | हम बच्चों को सिर्फ मनोरंजन देते हैं, ज्ञान नहीं | किताबों से उन्हें दोनों चीज़े हासिल हो सकती हैं |

पढना, ढेर पढना आपकी सोच का दायरा विस्तृत करने में आपकी मदद करता है | आपके अन्दर एक आत्मविश्वास तो जगाता ही है साथ ही आपके ज़हन को एक आज़ाद और कॉंफिडेंट विचारधारा प्रदान करता है | मेरा मानना है की मनोरंजन के हर साधन की और उसके प्रभाव की एक सीमा होती है | लेकिन एक अच्छी किताब आपके साथ उम्र भर चलती है | आपके ज़हन में महफूज़ रहती है |
न जाने कितनी महान विभूतियों ने कितना कुछ लिख छोड़ा है हमारे लिए | अगर पढना चाहे तो उम्र कम पड़ जाए | विश्व-साहित्य को छोड भी दिया जाए तो भी भारतीय साहित्य अपने आप में एक विशाल महासागर है | हिंदी में कितने श्रेष्ठ और गुणी लेखक हुए, जिनको पढना हर बार नई ज़िन्दगी जीने जैसा है | इसके अलावा मराठी,बंगाली,पंजाबी में भी साहित्य की अद्भुत परंपरा रही है | मैं जब बंकिम दा को पढ़ती हूँ तो मुझे अफ़सोस होने लगता है की क्यूँ उनकी सारी रचनाओं का हिंदी अनुवाद उपलब्ध नहीं ? या क्यूँ मुझे बंगाली नहीं आती...? इसी तरह जब दोस्तोवस्की,चेखव,गोर्की,शेक्सपियर या ऐसे ही किसी जगतप्रसिद्ध लेखक कि कृतियों का हिंदी अनुवाद पढ़ती हूँ तो दिल उसे उपलब्ध कराने वाले के लिए सैंकड़ो दुआए देने लगता है | मेरी ज़िन्दगी में कुछ किताबे ऐसी रही जो मेरी अत्यधिक प्रिय बन गयी | जिनमे डोमिनिक लापिएर की the city of joy, राही साहब की टोपी शुक्ला, शिवाजी सावंत की मृत्युंजय, वी.पी.काले जी की वपुर्ज़ा, कमलेश्वर जी की कितने पाकिस्तान आदि प्रमुख है | वैसे तो ये वो नाम है जो एक बार में याद आ गए | अगर सोचने बैठू तो ये लिस्ट बहुतलम्बी, बहुतही ज्यादा लम्बी हो सकती है |

पढने के मामले में हमारे यहाँ की सोच और विदेशी सोच में बड़ा अंतर है | हमारे यहाँ किताबे कभी भी हमारे बजट में शामिल नहीं रही | ब्रांडेड कपडे और कॉस्मेटिक्स पर हजारों रुपए फूंकने में जरा भी ना हिचकिचाने वाला भारतीय मध्यमवर्ग जब किताबों पर खर्च करने की बात पर आता है तो हिसाब लगाने लगता है | विदेशों में ऐसा नहीं है | वहां का पाठक पहले किताब पसंद करता है, उसे बगल में दबाता है फिर पूछता है की क्या कीमत देनी है ! काश ऐसा सुदिन भारत में भी देखने को मिले | आज भी भारतीय परिवार अपने बच्चों को कोर्स की किताबों के अलावा कुछ और पढता देखता है तो कोहराम मचा देता है | ये सोच बदलना जरुरी है |

कहते है की साहित्य समाज का दर्पण है | आज की युवा पीढ़ी और आनेवाली पीढ़ी की इस दर्पण से वाकफियत करानी बहुतजरुरी है | आज का युवा रात को बेड पर सोने से पहले किसी अच्छी किताब को पढने की बजाय मोबाइल पे एसएमएस भेजने में और पाने में व्यस्त रहता है | पढ़ाई से पैदा हुई टेक्नोलॉजी पढ़ाई को ही ख़त्म करती प्रतीत हो रही है | ये खतरनाक ट्रेंड है | किसी भी घर में, किसी युवा की अलमारी में किताबों की बजाय सीडी, डीवीडी के लगे ढेर चिंताजनक है | इसे रोकना बेहद जरुरी है | महान विचारक सिसरो ने यूं ही नहीं कहा की पुस्तकों के बिना घर जैसे आत्मा बिना शरीर |

किताबों के बारे में मेरी एक फेवरेट कोटेशन हैं जो मैं अक्सर अक्षर-शत्रुओं के मुंह पर मारने से बाज़ नहीं आती | किसी सयाने ने कहा है की, a person who does not read, is no better than a person who can not read…सौ फीसदी सच बात है ये | जो पढना जानकर भी नहीं पढता वो तो अनपढ़ ही हुआ ! इसीलिए कहती हूँ, किताबों के जादूभरे संसार से अपना परिचय बढ़ाइए | उससे दोस्ती कीजिये | आप कभी तनहा नहीं रहेंगे | और बोरियत नाम की बीमारी तो आपको होगी ही नहीं |

जो मित्र किसी वजह से पढ़ नहीं पाते ( रूचि नहीं है, सब्र नहीं है, वक्त नहीं है या किताबे उपलब्ध नहीं है वगैरह वगैरह ) उनको मेरी सलाह है की वो अपने बच्चों में पढने पढ़ाने की आदत जरुर जरुर डाले | किताबों से उनका परिचय करायें | ऐसा करके आप उनके भविष्य को उज्जवल बनाने में बड़ी मदद करेंगे | शब्दों से उनकी दोस्ती कराइए और यकीन जानिये की वो ज़हनी तौर पर सक्षम और मजबूत हो जायेंगे | किताबे पढना एक अद्भुत,अनूठा एवं रोमांचकारी अनुभव है | पुस्तकों का संसार अद्वितीय है, अथाह है, उनकी जगह टेक्नोलॉजी की देन गजेटरी कभी नहीं ले सकती | अपनी बात चार्ल्स डब्ल्यू. इलियट के इस जगतप्रसिद्ध कथन से ख़त्म करना चाहूंगी....
“books are the quietest and most constant of friends; they are the most accessible and wisest counsellors, and the most patient of teachers.”

Friday, March 29, 2013

हम को जीने का हुनर आया बहुत देर के बाद

हम को जीने का हुनर आया बहुत देर के बाद
ज़िन्दगी, हमने तुझे पाया बहुत देर के बाद

यूँ तो मिलने को मिले लोग हज़ारों लेकिन
जिसको मिलना था, वही आया बहुत देर के बाद

दिल की बात उस से कहें, कैसे कहें, या न कहें
मसअला हमने ये सुलझाया बहुत देर के बाद

दिल तो क्या चीज़ है, हम जान भी हाज़िर करते
मेहरबान आप ने फरमाया बहुत देर के बाद

बात अशआर के परदे में भी हो सकती है
भेद यह ‘दोस्त’ ने अब पाया बहुत देर के बाद

------–दोस्त मोहम्मद खान

Tuesday, March 26, 2013

आस्था - कितनी जरूरी

पिछले कुछ दिनों से फेसबुक पर आस्तिकता और नास्तिकता की बहस को फॉलो कर रही हूँ । बहसबाजी का मौसम उफान पर है । दोनों तरफ से भारी भारी दलीले देकर साबित किया जा रहा है की कैसे उन्हीं का पक्ष सही है । आस्तिकों को शिकायत है की नास्तिक वर्ग उनकी आस्था का मखौल तो उड़ाता ही है साथ ही धर्म को मानने वाले हर व्यक्ती को और धर्म को गालिया देना इन्होने अपना ‘धर्म’ बना रखा है । नास्तिकों को ऐतराज़ है की धर्म ने और उसके मानने वालों ने दुनिया में इंसानियत के पनपने की गुंजाइश ही नहीं छोड़ी । धर्म हर बंटवारे का मूल कारण साबित होता जा रहा है । शिकायते दोनों तरफ है, और कुछ तो सौ फीसदी जायज़ भी है । इस विषय पर बहोत ही काबिल और गुणी लोगों ने अपनी बात तर्कपूर्ण रूप से कही है । उनमे से किसी की भी बात को ना काटते हुए मैं अपनी बात कहना चाहूंगी ।
मेरा अपना ये मानना है की आस्था इंसान की पहचान नहीं जरुरत हैं । और इसीलिए इंसान की मजबूरी भी है ।
फरेब,हक-तलफी,नाइंसाफी और धोखाधड़ी से भरी इस दुनिया में आम आदमी तूफ़ान में फंसी नौका की तरह बेबस और लाचार है । सिस्टम से लड़ने का हौंसला नहीं, नाइंसाफियों के खिलाफ उठ खड़े होने की हैसियत नहीं और नित नई समस्याओं से जूझने की कूवत नहीं । ऐसे हालातों में सर्वाइव करना कोई मजाक नहीं । फिर भी इंसान सर्वाइव करता है । और हसते मुस्कुराते हुए करता है । क्यूँ....? क्यूँ की उसके पास आस्था है । किसी ईश्वरीय शक्ति के मौजूद होने का विश्वास ही उसके लिए सुकूनभरा है । जब बुरी तरह से सताया गया आदमी हालातों से हार जाता है तो मन के किसी कोने में उसे ये विश्वास जरुर होता है की एक ना एक दिन मेरी दुआए जरुर कबूल होंगी । एक ना एक दिन मुझे इन्साफ जरुर मिलेगा । अगर ये विश्वास ही ख़तम हो जाए तो इंसानी ज़िन्दगी में कुछ न बचा ! इसी विश्वास के सहारे वो मुश्किल से मुश्किल हालातों में से भी फीनिक्स की तरह परवाज़ करने का मंसूबा पालता है । किसी अदृश्य ताकत के हमारी ज़िन्दगी में मौजूद होने की कल्पना बड़ी सुखद और दिलासा देने वाली है । इंसान कदम कदम पर गलतिया करता रहता है पर जब उन गलतियों की स्वीकारोक्ति की नौबत आती है तो ये कहके खुद को आज़ाद करा लेता है की उपरवाले की यही मर्ज़ी थी । अपनी गलतियों को पीछे छोड कर आगे बढ़ने के लिए भी इंसान को ईश्वर के नाम की जरुरत है ।
आये दिन दुनिया में हैवानियत का नंगा नाच होता है, मासूमों के खून की होली खेली जाती है, नाइंसाफी के नए नए कीर्तिमान रचे जाते है । ऐसे हर घृणित कार्य को देखकर आम आदमी---कमज़ोर,मजबूर,लाचार आम आदमी---यही सोचता है की ऐसे कामों के लिए जिम्मेदार लोगों को अल्लाह/भगवान/गॉड सज़ा देगा । क्यूँ की दुनिया में तो इन्साफ नाम की चीज़ बची नहीं । वो सोचता है की ईश्वरीय शक्ति ऐसे लोगों का लेजर अकाउंट मेनटेन कर रही होगी और उनके लिए कोई सज़ा जरुर जरुर तजवीज करेगी । इसी तरह दुनिया में ऐसे लोग भी है जो बिना किसी वजह के अज़ाब भरी ज़िन्दगी जीने के लिए अभिशप्त है । असाध्य रोगों के रोगी, अपंगता के शिकार लोग, समाज के सबसे निचले तबके के लोग । उनके बारे में भी यही सोचा जाता है की एक ना एक दिन इनके दुखों के अंत जरुर होगा । सबकी सुध रखने वाला वो परम दयालु परमात्मा सबके साथ इन्साफ करेगा ।
जरा सोचिये, अगर ये विश्वास ही ख़त्म हो जाए तो फिर...! इसका मतलब तो ये हुआ की दुनिया में जो कुछ भी चल रहा है सब ठीक है । मदर टेरेसा और हिटलर एक ही श्रेणी में...। किसी बिन लादेन को कोई सज़ा नहीं मिलेगी । दहशतगर्दों की करतूत का कोई जवाब नहीं माँगा जाएगा । जिंदगीभर अनगिनत दुखों की सलीब ढोने वाले लोगों को कोई सुकून का लम्हा मयस्सर नहीं होगा । जालिम का जुल्म बदस्तूर जारी रहेगा । दबा कुचला आदमी अपनी निकृष्टतम ज़िन्दगी घसीटता हुआ जीता रहेगा और एक दिन मर भी जाएगा । कोई खुदाई इन्साफ नहीं होगा । किसी उम्मीद की किरण का कोई अस्तित्व नहीं होगा ।
और साहेबान, ईश्वरीय न्याय की उम्मीद के बगैर आदमी जीते जी मर जाएगा ।
इसीलिए आस्था का होना जरुरी हैं । आस्था वो दिया है जो घुप्प अँधेरे में भी राह पाने की उम्मीद को जिंदा रखता है ।

जाते जाते ये बताती चलूँ की मैं आस्तिक हूँ । मेरा सृष्टि के सृजनकर्ता में पूरा पूरा विश्वास हैं ।
और ये भी बता देना प्रासंगिक होगा की,
मुझे धर्म से, किसी भी धर्म से कोई परहेज़ नहीं पर धर्मान्धता से जरुर जरुर है ।

Monday, March 25, 2013

होली की बधाई

यूं तो हिंदी फिल्म इंडस्ट्री ने होली के कई सदाबहार गीत दिए हैं पर जो बात 'रंग बरसे' में हैं वो किसी में नहीं..... जब भी सुनो होली का खुमार धमाके से चढ़ने लगता हैं..... और अगर विडियो अवेलेबल हो तो कहना ही क्या...! visual treat ही मानो फिर......वो अमिताभ का रेखा के संग झूम कर नाचना... वो संजीव कुमार और जया के expressions..... सब कुछ वाह वाह हैं.... कहते हैं की सिलसिला के वक्त अमिताभ और रेखा के बारे में अफवाहे उडनी शुरू हो चुकी थी जिससे जया नाराज़ चल रही थी... अब इस गाने में रील लाइफ को रियल लाइफ से जोड़ कर हर दर्शक अपना मज़ा दोबाला कर लेता हैं...
वो चाहे जो कुछ भी रहा हो, गीत शानदार हैं... होली के त्यौहार पर इसको याद ना करना नाइंसाफी होगी...
सभी मित्रों को होली की दिली मुबारकबाद......

Sunday, March 24, 2013

बिछड़ गया तो कभी लौट कर नहीं आया

बिछड़ गया तो कभी लौट कर नहीं आया
सफ़र में उसके कहीं अपना घर नहीं आया

वो एहतराम से करते हैं खून भरोसे का
हमें अब तक भी मगर ये हुनर नहीं आया

मेरे वादे का जुनूँ देख, तुझसे बिछड़ा तो
कभी ख़्वाबों में भी तेरा ज़िकर नहीं आया

दुश्मनी हमने भी की है मगर सलीके से
हमारे लहजे में तुमसा ज़हर नहीं आया

----------- अज्ञात.

Thursday, March 21, 2013

दर्द वाक़िफ़ हो चला है मेरे हर ठिकाने से

मुझे ढूंढ लेता है रोज़ नये बहाने से
दर्द वाक़िफ़ हो चला है मेरे हर ठिकाने से...

---------- अज्ञात